श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 57: हनुमान जी का समद्र को लाँघकर जाम्बवान् और अङ्गद आदि सुहृदों से मिलना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  5.57.26 
 
 
ते प्रीता: पादपाग्रेषु गृह्य शाखामवस्थिता:।
वासांसि च प्रकाशानि समाविध्यन्त वानरा:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रसन्न वानर वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर बैठे थे। वे अपने चमकीले कपड़े लहरा रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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