श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 57: हनुमान जी का समद्र को लाँघकर जाम्बवान् और अङ्गद आदि सुहृदों से मिलना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  5.57.25 
 
 
ते नगाग्रान्नगाग्राणि शिखराच्छिखराणि च।
प्रहृष्टा: समपद्यन्त हनूमन्तं दिदृक्षव:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  देखने की इच्छा से प्रसन्न होकर वे एक पर्वत शिखर से दूसरे पर्वत शिखरों पर तथा एक शिखर से दूसरे शिखरों पर चढ़ते चले गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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