वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 57: हनुमान जी का समद्र को लाँघकर जाम्बवान् और अङ्गद आदि सुहृदों से मिलना
»
श्लोक 25
श्लोक
5.57.25
ते नगाग्रान्नगाग्राणि शिखराच्छिखराणि च।
प्रहृष्टा: समपद्यन्त हनूमन्तं दिदृक्षव:॥ २५॥
अनुवाद
play_arrowpause
देखने की इच्छा से प्रसन्न होकर वे एक पर्वत शिखर से दूसरे पर्वत शिखरों पर तथा एक शिखर से दूसरे शिखरों पर चढ़ते चले गए।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.