कपिवर हनुमान जी को यह ज्ञात हो चुका था कि राजकुमारी सीता को कोई क्षति नहीं पहुँची है, अतः उन्होंने अपने पूरे मनोरथ को सफल मानते हुए, पुनः उनका प्रत्यक्ष दर्शन कर, लौटने का निर्णय किया।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे पञ्चपञ्चाश: सर्ग:॥ ५५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें पचपनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५५॥