श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  5.55.35 
 
 
तत: कपि: प्राप्तमनोरथार्थ-
स्तामक्षतां राजसुतां विदित्वा।
प्रत्यक्षतस्तां पुनरेव दृष्ट्वा
प्रतिप्रयाणाय मतिं चकार॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  कपिवर हनुमान जी को यह ज्ञात हो चुका था कि राजकुमारी सीता को कोई क्षति नहीं पहुँची है, अतः उन्होंने अपने पूरे मनोरथ को सफल मानते हुए, पुनः उनका प्रत्यक्ष दर्शन कर, लौटने का निर्णय किया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे पञ्चपञ्चाश: सर्ग:॥ ५५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें पचपनवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ५५॥
 
 
 
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