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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण
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श्लोक 33
श्लोक
5.55.33
इति शुश्राव हनुमान् वाचं ताममृतोपमाम्।
बभूव चास्य मनसो हर्षस्तत्कालसम्भव:॥ ३३॥
अनुवाद
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जब हनुमान जी ने चारणों के अमृत समान मधुर वचन सुने, तो उनके मन में तत्काल हर्षोल्लास छा गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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