वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण
»
श्लोक 29
श्लोक
5.55.29
स तथा चिन्तयंस्तत्र देव्या धर्मपरिग्रहम्।
शुश्राव हनुमांस्तत्र चारणानां महात्मनाम्॥ २९॥
अनुवाद
play_arrowpause
हनुमान जी वहाँ भगवती सीता की धर्मपरायणता के बारे में विचार करते हुए वहाँ महात्मा चारणों के मुख से निकल रही इन बातों को सुनते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.