श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  5.55.29 
 
 
स तथा चिन्तयंस्तत्र देव्या धर्मपरिग्रहम्।
शुश्राव हनुमांस्तत्र चारणानां महात्मनाम्॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  हनुमान जी वहाँ भगवती सीता की धर्मपरायणता के बारे में विचार करते हुए वहाँ महात्मा चारणों के मुख से निकल रही इन बातों को सुनते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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