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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण
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श्लोक 28
श्लोक
5.55.28
तपसा सत्यवाक्येन अनन्यत्वाच्च भर्तरि।
असौ विनिर्दहेदग्निं न तामग्नि: प्रधक्ष्यति॥ २८॥
अनुवाद
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वे यह मानने लगे कि तपस्या, सत्यवाक्य बोलने और पति के प्रति अनन्य भक्ति के कारण आर्या सीता ही अग्नि को जला सकती हैं, आग उन्हें नहीं जला सकती।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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