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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण
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श्लोक 27
श्लोक
5.55.27
पुनश्चाचिन्तयत् तत्र हनूमान् विस्मितस्तदा।
हिरण्यनाभस्य गिरेर्जलमध्ये प्रदर्शनम्॥ २७॥
अनुवाद
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तब हनुमान जी ने वहाँ विस्मित होकर पुनः उस घटना को याद किया, जब समुद्र के बीच में उन्हें हिरण्यनाभ पर्वत का दर्शन हुआ था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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