श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  5.55.26 
 
 
यद् वा दहनकर्मायं सर्वत्र प्रभुरव्यय:।
न मे दहति लाङ्गूलं कथमार्यां प्रधक्ष्यति॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  "सर्वत्र अपने प्रभाव को रखने वाली एवं सबको जलाने में समर्थ यह दाहक अग्नि, जिसके प्रभाव से मेरी पूँछ भी नहीं जल पाती, तो ऐसी में मेरी प्राणसम और आराध्य माता जानकी को कैसे जला सकेगी?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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