यद् वा दहनकर्मायं सर्वत्र प्रभुरव्यय:।
न मे दहति लाङ्गूलं कथमार्यां प्रधक्ष्यति॥ २६॥
अनुवाद
"सर्वत्र अपने प्रभाव को रखने वाली एवं सबको जलाने में समर्थ यह दाहक अग्नि, जिसके प्रभाव से मेरी पूँछ भी नहीं जल पाती, तो ऐसी में मेरी प्राणसम और आराध्य माता जानकी को कैसे जला सकेगी?"