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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण
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श्लोक 25
श्लोक
5.55.25
त्रयाणां भरतादीनां भ्रातॄणां देवता च या।
रामस्य च मन:कान्ता सा कथं विनशिष्यति॥ २५॥
अनुवाद
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श्रीरामचंद्रजी के हृदय की रानी और भरत सहित तीनों भाइयों की आराध्य देवी देवी सीता अग्नि से कैसे नष्ट हो सकती हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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