श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  5.55.22 
 
 
अथ वा चारुसर्वाङ्गी रक्षिता स्वेन तेजसा।
न नशिष्यति कल्याणी नाग्निरग्नौ प्रवर्तते॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  अथवा सम्भव है कि चारु सर्वाङ्गी सीता अपने ही तेज से सुरक्षित हों। कल्याणी जनकनन्दिनी का नाश कदापि नहीं होगा क्योंकि आग आग को नहीं जलाती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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