श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  5.55.21 
 
 
इति चिन्तयतस्तस्य निमित्तान्युपपेदिरे।
पूर्वमप्युपलब्धानि साक्षात् पुनरचिन्तयत्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार चिंतन करते हुए हनुमान जी को शुभ शकुन दिखाई दिए। इन शकुनों के अच्छे परिणामों का उन्हें पहले से ही अनुभव था। इसलिए, वे फिर से इस तरह सोचने लगे-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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