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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 15
श्लोक
5.55.15
मया खलु तदेवेदं रोषदोषात् प्रदर्शितम्।
प्रथितं त्रिषु लोकेषु कपित्वमनवस्थितम्॥ १५॥
अनुवाद
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मैंने रोष के दोष के कारण यहाँ केवल वानरों की तरह चंचलता का प्रदर्शन किया है। यह मेरी चपलता तीनों लोकों में विख्यात है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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