कथं नु जीवता शक्यो मया द्रष्टुं हरीश्वर:।
तौ वा पुरुषशार्दूलौ कार्यसर्वस्वघातिना॥ १४॥
अनुवाद
जब मैंने सारा कार्य ही नष्ट कर दिया, तब अब जीते-जी कैसे वानरराज सुग्रीव अथवा उन दोनों पुरुषसिंह श्रीराम और लक्ष्मणका दर्शन कर सकता हूँ या उन्हें अपना मुँह दिखा सकता हूँ? कथं नु जीवता शक्यो मया द्रष्टुं हरीश्वर:||