श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  5.55.14 
 
 
कथं नु जीवता शक्यो मया द्रष्टुं हरीश्वर:।
तौ वा पुरुषशार्दूलौ कार्यसर्वस्वघातिना॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  जब मैंने सारा कार्य ही नष्ट कर दिया, तब अब जीते-जी कैसे वानरराज सुग्रीव अथवा उन दोनों पुरुषसिंह श्रीराम और लक्ष्मणका दर्शन कर सकता हूँ या उन्हें अपना मुँह दिखा सकता हूँ? कथं नु जीवता शक्यो मया द्रष्टुं हरीश्वर:||
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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