श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.55.13 
 
 
किमग्नौ निपताम्यद्य आहोस्विद् वडवामुखे।
शरीरमिह सत्त्वानां दद्मि सागरवासिनाम्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  अग्नि के भीषण लपटों में कूद पड़ूँ या प्रलयकारी वन-अग्नि के मुँह में भस्म हो जाऊँ? या समुद्र के जल-प्राणियों को ही अपना शरीर समर्पित कर दूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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