श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 55: सीताजी के लिये हनुमान् जी की चिन्ता और उसका निवारण  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  5.55.1 
 
 
संदीप्यमानां वित्रस्तां त्रस्तरक्षोगणां पुरीम्।
अवेक्ष्य हनुमाँल्लङ्कां चिन्तयामास वानर:॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  जब हनुमान जी ने लंका में आग लगते, वहाँ के निवासियों को घबराते और राक्षसों को अत्यंत भयभीत होते देखा, तो उनके मन में यह सोचकर चिंता हुई कि कहीं सीता जी जल गई होंगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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