श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 54: लङ्कापुरी का दहन और राक्षसों का विलाप  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  5.54.43 
 
 
भङ्‍क्त्वा वनं पादपरत्नसंकुलं
हत्वा तु रक्षांसि महान्ति संयुगे।
दग्ध्वा पुरीं तां गृहरत्नमालिनीं
तस्थौ हनूमान् पवनात्मज: कपि:॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  पवनकुमार वानरवीर हनुमान उत्तम से उत्तम वृक्षों से भरे हुए वन को नष्ट करके, युद्ध में राक्षसों का वध करके और सुन्दर महलों से सुशोभित लंकापुरी को जलाकर शांत हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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