हवा की सहायता से आग धधकती रही और इतनी बढ़ गई कि अब वो प्रलयकाल जैसी दिखने लगी थी। उसकी लपटें इतनी ऊँची थीं कि ऐसा लग रहा था जैसे वो आकाश तक पहुँच रही हों। लंका के महलों में लगी इस आग में धुएँ का नामो-निशान नहीं था। ये राक्षसों के शरीर रूपी घी से बार-बार बढ़ रही थी।