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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 54: लङ्कापुरी का दहन और राक्षसों का विलाप
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श्लोक 17
श्लोक
5.54.17
तेषु तेषु महार्हेषु भवनेषु महायशा:।
गृहेष्वृद्धिमतामृद्धिं ददाह कपिकुञ्जर:॥ १७॥
अनुवाद
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महायशस्वी कपि और हाथी के सदृश वीर पवनपुत्र हनुमान जी ने विभिन्न बहुमूल्य भवनों में जा-जाकर समृद्धिशाली राक्षसों के घरों में रखी समस्त सम्पत्ति को आग लगाकर भस्म कर डाला।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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