श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 53: राक्षसों का हनुमान जी की पूँछ में आग लगाकर उन्हें नगर में घुमाना  »  श्लोक 16-18h
 
 
श्लोक  5.53.16-18h 
 
 
ततस्ते संवृताकारं सत्त्ववन्तं महाकपिम्॥ १६॥
परिगृह्य ययुर्हृष्टा राक्षसा: कपिकुञ्जरम्।
शङ्खभेरीनिनादैश्च घोषयन्त: स्वकर्मभि:॥ १७॥
राक्षसा: क्रूरकर्माणश्चारयन्ति स्म तां पुरीम्।
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् वे क्रूरकर्मा राक्षस अपने दिव्य आकार को छुपाकर रखने वाले सत्त्वगुणशाली महान वानरवीर कपिकुंजर हनुमान जी को पकड़कर बड़े हर्ष के साथ ले चले और शंख एवं भेरी बजाकर उनके (रावण-द्रोह आदि) अपराधों की घोषणा करते हुए उन्हें लंका पुरी में सब ओर घुमाने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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