निबद्ध: कृतवान् वीरस्तत्कालसदृशीं मतिम्॥ १०॥
कामं खलु न मे शक्ता निबद्धस्यापि राक्षसा:।
छित्त्वा पाशान् समुत्पत्य हन्यामहमिमान् पुन:॥ ११॥
अनुवाद
तब वीरवर हनुमान् जी बँधे-बँधे ही उस समयके योग्य विचार करने लगे—‘यद्यपि मैं बँधा हुआ हूँ तो भी इन राक्षसोंका मुझपर जोर नहीं चल सकता। इन बन्धनोंको तोड़कर मैं ऊपर उछल जाऊँगा और पुन: इन्हें मार सकूँगा॥ १०-११॥