श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 53: राक्षसों का हनुमान जी की पूँछ में आग लगाकर उन्हें नगर में घुमाना  »  श्लोक 10-11
 
 
श्लोक  5.53.10-11 
 
 
निबद्ध: कृतवान् वीरस्तत्कालसदृशीं मतिम्॥ १०॥
कामं खलु न मे शक्ता निबद्धस्यापि राक्षसा:।
छित्त्वा पाशान् समुत्पत्य हन्यामहमिमान् पुन:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  तब वीरवर हनुमान् जी बँधे-बँधे ही उस समयके योग्य विचार करने लगे—‘यद्यपि मैं बँधा हुआ हूँ तो भी इन राक्षसोंका मुझपर जोर नहीं चल सकता। इन बन्धनोंको तोड़कर मैं ऊपर उछल जाऊँगा और पुन: इन्हें मार सकूँगा॥ १०-११॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.