श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 52: विभीषण का दूत के वध को अनुचित बताकर उसे दूसरा कोई दण्ड देने के लिये कहना तथा रावण का उनके अनरोध को स्वीकार कर लेना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  5.52.12 
 
 
अधर्ममूलं बहुदोषयुक्त-
मनार्यजुष्टं वचनं निशम्य।
उवाच वाक्यं परमार्थतत्त्वं
विभीषणो बुद्धिमतां वरिष्ठ:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के वचन अनेक दोषों से युक्त थे और पाप का मूल थे। ऐसे वचन श्रेष्ठ पुरुषों के योग्य नहीं थे। इन्हें सुनकर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ विभीषण ने उत्तम कर्तव्य का पालन करने वाली बात कही।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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