श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 50: रावण का प्रहस्त के द्वारा हनुमान जी से लङ्का में आने का कारण पुछवाना और हनुमान् का अपने को श्रीराम का दूत बताना  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  5.50.12-13 
 
 
अथवा यन्निमित्तस्ते प्रवेशो रावणालये।
एवमुक्तो हरिवरस्तदा रक्षोगणेश्वरम्॥ १२॥
अब्रवीन्नास्मि शक्रस्य यमस्य वरुणस्य च।
धनदेन न मे सख्यं विष्णुना नास्मि चोदित:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  अथवा अन्य सभी बातें छोड़ो। रावण के इस नगर में आने का तुम्हारा उद्देश्य क्या है? बस यही बता दो। प्रहस्त के इस प्रकार पूछने पर उस समय वानरश्रेष्ठ हनुमान ने राक्षसों के स्वामी रावण से कहा- "मैं इंद्र, यम या वरुण का दूत नहीं हूँ। कुबेर से मेरी कोई मित्रता नहीं है और भगवान विष्णु ने भी मुझे यहां नहीं भेजा है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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