अतीत्य मार्गं सहसा महात्मा
स तत्र रक्षोऽधिपपादमूले।
ददर्श राज्ञ: परिचारवृद्धान्
गृहं महारत्नविभूषितं च॥ ५७॥
अनुवाद
जब महात्मा हनुमान जी ने पूरा रास्ता तय किया और अचानक राक्षसों के राजा रावण के पास पहुँचे, तो उन्होंने उसके चरणों के पास कई बूढ़े नौकरों और अनमोल रत्नों से सजी हुई सभा को देखा।