श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  5.48.57 
 
 
अतीत्य मार्गं सहसा महात्मा
स तत्र रक्षोऽधिपपादमूले।
ददर्श राज्ञ: परिचारवृद्धान्
गृहं महारत्नविभूषितं च॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
 
  जब महात्मा हनुमान जी ने पूरा रास्ता तय किया और अचानक राक्षसों के राजा रावण के पास पहुँचे, तो उन्होंने उसके चरणों के पास कई बूढ़े नौकरों और अनमोल रत्नों से सजी हुई सभा को देखा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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