हनुमान जी अस्त्र के बंधन से तो मुक्त हो गए थे परन्तु उन्होंने ऐसा व्यवहार किया जैसे उन्हें यह पता ही न हो। क्रूर राक्षस उन्हें बंधनों से पीड़ा पहुंचाते और कठोर मुक्कों से मारते हुए खींचकर ले चले। इस प्रकार वे वानरवीर को राक्षसराज रावण के पास पहुँचाए।