वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना
»
श्लोक 43
श्लोक
5.48.43
अस्त्रेणापि हि बद्धस्य भयं मम न जायते।
पितामहमहेन्द्राभ्यां रक्षितस्यानिलेन च॥ ४३॥
अनुवाद
play_arrowpause
अस्त्र से बँधे होने पर भी मुझे कोई भय नहीं है, क्योंकि पितामह ब्रह्मा, इंद्र और वायु देवता तीनों मेरी रक्षा करते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.