श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  5.48.43 
 
 
अस्त्रेणापि हि बद्धस्य भयं मम न जायते।
पितामहमहेन्द्राभ्यां रक्षितस्यानिलेन च॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  अस्त्र से बँधे होने पर भी मुझे कोई भय नहीं है, क्योंकि पितामह ब्रह्मा, इंद्र और वायु देवता तीनों मेरी रक्षा करते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.