श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  5.48.34 
 
 
ततस्तु लक्ष्ये स विहन्यमाने
शरेष्वमोघेषु च सम्पतत्सु।
जगाम चिन्तां महतीं महात्मा
समाधिसंयोगसमाहितात्मा॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  जब लक्ष्मण पर लक्ष्य करके छोड़े गए मेघनाद के अमोघ बाण भी व्यर्थ ही जमीन पर गिरने लगे, तब लक्ष्य को भेदने वाले अपने बाणों पर हमेशा एकाग्रचित्त रहने वाले उस महात्मा को बड़ी चिंता हुई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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