ततस्तु लक्ष्ये स विहन्यमाने
शरेष्वमोघेषु च सम्पतत्सु।
जगाम चिन्तां महतीं महात्मा
समाधिसंयोगसमाहितात्मा॥ ३४॥
अनुवाद
जब लक्ष्मण पर लक्ष्य करके छोड़े गए मेघनाद के अमोघ बाण भी व्यर्थ ही जमीन पर गिरने लगे, तब लक्ष्य को भेदने वाले अपने बाणों पर हमेशा एकाग्रचित्त रहने वाले उस महात्मा को बड़ी चिंता हुई।