श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  5.48.23 
 
 
समागतास्तत्र तु नागयक्षा
महर्षयश्चक्रचराश्च सिद्धा:।
नभ: समावृत्य च पक्षिसङ्घा
विनेदुरुच्चै: परमप्रहृष्टा:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय नाग, यक्ष, महर्षि और तारों के बीच भ्रमण करने वाले सिद्धगण भी वहां आ गए। साथ ही, पक्षियों के समूह ने आकाश को ढंक लिया और बहुत खुश होकर ऊंची आवाज में चहचहाना शुरू कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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