श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  5.48.18 
 
 
स पक्षिराजोपमतुल्यवेगै-
र्व्याघ्रैश्चतुर्भि: स तु तीक्ष्णदंष्ट्रै:।
रथं समायुक्तमसह्यवेग:
समारुरोहेन्द्रजिदिन्द्रकल्प:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  शत्रुओ के लिए जिसका वेग असहनीय था, वह इंद्र के समान पराक्रमी मेघनाद पक्षिराज गरुड़ के समान तीव्र गति से उड़नेवाला तीखे नुकीले दाँतों वाले चार सिंहों द्वारा खींचे जानेवाले उत्तम रथ पर सवार हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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