स पक्षिराजोपमतुल्यवेगै-
र्व्याघ्रैश्चतुर्भि: स तु तीक्ष्णदंष्ट्रै:।
रथं समायुक्तमसह्यवेग:
समारुरोहेन्द्रजिदिन्द्रकल्प:॥ १८॥
अनुवाद
शत्रुओ के लिए जिसका वेग असहनीय था, वह इंद्र के समान पराक्रमी मेघनाद पक्षिराज गरुड़ के समान तीव्र गति से उड़नेवाला तीखे नुकीले दाँतों वाले चार सिंहों द्वारा खींचे जानेवाले उत्तम रथ पर सवार हुआ।