वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
»
सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना
»
श्लोक 13
श्लोक
5.48.13
न खल्वियं मतिश्रेष्ठ यत्त्वां सम्प्रेषयाम्यहम्।
इयं च राजधर्माणां क्षत्रस्य च मतिर्मता॥ १३॥
अनुवाद
play_arrowpause
वीरवर! तुम्हें इस प्रकार के संकट में भेजना, यद्यपि स्नेह की दृष्टि से उचित नहीं है, परन्तु यह राजनीति और क्षत्रिय धर्म के अनुकूल है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.