श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 48: इन्द्रजित और हनुमान जी का युद्ध, उसके दिव्यास्त्र के बन्धन में बँधकर हनुमान् जी का रावण के दरबार में उपस्थित होना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.48.13 
 
 
न खल्वियं मतिश्रेष्ठ यत्त्वां सम्प्रेषयाम्यहम्।
इयं च राजधर्माणां क्षत्रस्य च मतिर्मता॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  वीरवर! तुम्हें इस प्रकार के संकट में भेजना, यद्यपि स्नेह की दृष्टि से उचित नहीं है, परन्तु यह राजनीति और क्षत्रिय धर्म के अनुकूल है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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