वह रथ उसे कठोर तपस्याओं के फलस्वरूप प्राप्त हुआ था। उस रथ में सोने की जाली लगी हुई थी और पताका फहरा रही थी। उसके ध्वजदंड में रत्न जड़े हुए थे। उसमें मन के समान वेग वाले आठ घोड़े अच्छी तरह से जुते हुए थे। वह रथ इतना शक्तिशाली था कि देवता या असुर भी उसे नष्ट नहीं कर सकते थे। उसकी गति कभी नहीं रुकती थी और वह बिजली की तरह प्रकाशित होता था। उस रथ को सभी आवश्यक वस्तुओं से सुसज्जित किया गया था। उसमें तरकस रखे गए थे और आठ तलवारें बंधी हुई थीं, जिससे वह और भी सुंदर दिखाई देता था। उसमें यथास्थान शक्ति और तोमर आदि अस्त्र-शस्त्र क्रम से रखे गए थे। चंद्रमा और सूर्य के समान दीप्तिमान् और सोने की रस्सी से युक्त युद्ध के सभी उपकरणों से सुशोभित उस रथ पर बैठकर अक्ष कुमार, जो देवताओं के समान पराक्रमी था, राजमहल से बाहर निकला।