उन तीनों राक्षसों के वज्रों के प्रहार से हनुमान जी के सिर में एक साथ ही चोट लगी, जिससे खून की धारा बहने लगी। वह रक्त उनके पूरे शरीर में फैल गया और उनकी आँखें लाल हो गईं। उस समय बाणों की किरणों से युक्त होकर वे तुरंत उगे हुए सूरज के समान दिखने लगे, जिसके चारों ओर किरणों का प्रभामंडल था।