श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 46: रावण के पाँच सेनापतियों का वध  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  5.46.37 
 
 
समुत्पाटॺ गिरे: शृङ्गं समृगव्यालपादपम्।
जघान हनुमान् वीरो राक्षसौ कपिकुञ्जर:।
गिरिशृङ्गसुनिष्पिष्टौ तिलशस्तौ बभूवतु:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  तब बलशाली और महान वीर हनुमान जी ने एक पर्वत की चोटी को उखाड़ लिया, जिसमें हिरण, सांप और पेड़ भी थे। उन्होंने उस पर्वत की चोटी से उन दोनों राक्षसों पर प्रहार किया। पर्वत की चोटी के प्रहार से वे दोनों राक्षस कुचल गए और उनके शरीर तिल के बीजों के समान टुकड़े-टुकड़े हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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