स तै: पञ्चभिराविद्ध: शरै: शिरसि वानर:।
उत्पपात नदन् व्योम्नि दिशो दश विनादयन्॥ २३॥
अनुवाद
पञ्च तीक्ष्ण बाणों से अपने मस्तक में गहरे घाव खाकर वानरवीर हनुमान जी तीव्र वेदना और असहनीय क्रोध से भर उठे। वे अपनी भयानक गर्जना से दसों दिशाओं को गुंजायमान करते हुए आकाश में ऊपर की ओर लपक पड़े।