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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 44: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध
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श्लोक 17
श्लोक
5.44.17
तस्य चैव शिरो नास्ति न बाहू जानुनी न च।
न धनुर्न रथो नाश्वास्तत्रादृश्यन्त नेषव:॥ १७॥
अनुवाद
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तब उसके सिर, दोनों बाहों और घुटनों का पता नहीं चला। न धनुष बचा, न रथ, न वहाँ घोड़े दिखायी दिये और न बाण ही।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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