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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 44: हनुमान जी के द्वारा चैत्यप्रासाद का विध्वंस तथा उसके रक्षकों का वध
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श्लोक 15
श्लोक
5.44.15
स शरै: पूरिततनु: क्रोधेन महता वृत:।
तमेव परिघं गृह्य भ्रामयामास वेगित:॥ १५॥
अनुवाद
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शरों से भरा उनका शरीर क्रोध से प्रज्वलित हो उठा। फिर तो उन्होंने उस परिघ को उठाकर तेज गति से घुमाना शुरू कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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