तब पवनपुत्र हनुमान जी ने राक्षसों को इस प्रकार आक्रमण करते देखा तो क्रोधित होकर भयंकर रूप धारण किया। उन्होंने उस महल के एक सोने के स्तंभ को, जिसमें सौ धारें थीं, बड़ी तेज़ी से उखाड़ लिया। उखाड़कर उस महाबली वीर ने उसे घुमाना शुरू किया। घुमाने पर उससे आग प्रकट हुई, जिससे वह महल जलने लगा।