श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 42: राक्षसियों के मुख से एक वानर के द्वारा प्रमदावन के विध्वंस का समाचार सुनकर रावण का किंकर नामक राक्षसों को भेजना और हनुमान जी के द्वारा उन सबका संहार  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  5.42.23 
 
 
तस्य क्रुद्धस्य नेत्राभ्यां प्रापतन्नश्रुबिन्दव:।
दीप्ताभ्यामिव दीपाभ्यां सार्चिष: स्नेहबिन्दव:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के क्रोध से भरे नेत्रों से आँसू की बूँदें झरने लगीं, मानो दो जलते हुए दीपकों से आग की लपटों के साथ तेल की बूँदें टपक रही हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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