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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 41: हनुमान जी के द्वारा प्रमदावन (अशोक वाटिका)- का विध्वंस
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श्लोक 19
श्लोक
5.41.19
लतागृहैश्चित्रगृहैश्च सादितै-
र्व्यालैर्मृगैरार्तरवैश्च पक्षिभि:।
शिलागृहैरुन्मथितैस्तथा गृहै:
प्रणष्टरूपं तदभून्महद् वनम्॥ १९॥
अनुवाद
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लतामंडप और चित्रशालाएँ उजाड़ हो गईं। पालतू हिंसक जानवर, मृग और तरह-तरह के पक्षी विलाप करने लगे। पत्थर से बने महल और अन्य सामान्य घर भी तबाह हो गए। इससे उस महान् मनोरम वन का सारा सौंदर्य नष्ट हो गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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