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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 41: हनुमान जी के द्वारा प्रमदावन (अशोक वाटिका)- का विध्वंस
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श्लोक 14
श्लोक
5.41.14
ततो मारुतवत् क्रुद्धो मारुतिर्भीमविक्रम:।
ऊरुवेगेन महता द्रुमान् क्षेप्तुमथारभत्॥ १४॥
अनुवाद
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तब वायु के समान प्रचंड वेग वाले तथा भयानक शौर्यशाली मारुति (हनुमान) क्रोधित हो गए और अपनी जाँघों के बल से बड़े-बड़े वृक्षों को उखाड़-उखाड़कर फेंकने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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