श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 41: हनुमान जी के द्वारा प्रमदावन (अशोक वाटिका)- का विध्वंस  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  5.41.13 
 
 
अहं च तै: संयति चण्डविक्रमै:
समेत्य रक्षोभिरभङ्गविक्रम:।
निहत्य तद् रावणचोदितं बलं
सुखं गमिष्यामि हरीश्वरालयम्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  उस युद्ध में मेरा संचार अवरुद्ध नहीं हो सकता। मेरे पराक्रम को कुंठित नहीं किया जा सकता। मैं अत्यंत प्रचंड पराक्रम दिखाने वाले उन राक्षसों से भिड़ जाऊँगा और रावण द्वारा भेजी हुई उस समस्त सेना का संहार करके मैं हनुमान जी के निवास स्थान किष्किन्धा पूरी में सुखपूर्वक लौट जाऊँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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