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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 39: समद्र-तरण के विषय में शङ्कित हुई सीता को वानरों का पराक्रम बताकर हनुमान जी का आश्वासन देना
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श्लोक 51
श्लोक
5.39.51
स तु मर्मणि घोरेण ताडितो मन्मथेषुणा।
न शर्म लभते राम: सिंहार्दित इव द्विप:॥ ५१॥
अनुवाद
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श्रीरामचंद्रजी के हृदय में कामदेव के तीक्ष्ण बाणों ने घाव किया है। इसी कारण वे सिंह से पीड़ित हुए हाथी की तरह चैन नहीं पा रहे हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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