श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 38: सीताजी का हनुमान जी को पहचान के रूप में चित्रकट पर्वत पर घटित हए एक कौए के प्रसंग को सुनाना, श्रीराम को शीघ्र बुलाने के लिये अनुरोध करना और चूड़ामणि देना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  5.38.43 
 
 
तस्य वीर्यवत: कच्चिद् यद्यस्ति मयि सम्भ्रम:।
किमर्थं न शरैस्तीक्ष्णै: क्षयं नयति राक्षसान्॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  उन परम पराक्रमी श्रीराम का हृदय यदि मेरे लिए व्याकुल है, तो फिर वे अपने तीखे सायकों से इन राक्षसों का संहार क्यों नहीं कर डालते?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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