श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 38: सीताजी का हनुमान जी को पहचान के रूप में चित्रकट पर्वत पर घटित हए एक कौए के प्रसंग को सुनाना, श्रीराम को शीघ्र बुलाने के लिये अनुरोध करना और चूड़ामणि देना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  5.38.18 
 
 
त्वया विहसिता चाहं क्रुद्धा संलज्जिता तदा।
भक्ष्यगृद्धेन काकेन दारिता त्वामुपागता॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  देखकर आपने मेरी हंसी उड़ाई। इससे मैं पहले तो गुस्से में आई और फिर शर्मिंदा हो गई। इतने में ही उस खाने के लालची कौए ने फिर से अपनी चोंच से मुझे नोचकर घायल कर दिया और उसी हालत में मैं आपके पास आई।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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