श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  5.36.46 
 
 
स देवि नित्यं परितप्यमान-
स्त्वामेव सीतेत्यभिभाषमाण:।
धृतव्रतो राजसुतो महात्मा
तवैव लाभाय कृतप्रयत्न:॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  हे देवी! राजकुमार महात्मा श्रीराम आपके लिए सदा दुखी रहते हैं और सीता-सीता कहकर आपका ही नाम जपते हैं। वे उत्तम व्रत का पालन करते हुए आपकी ही प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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