श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  5.36.44 
 
 
अनिद्र: सततं राम: सुप्तोऽपि च नरोत्तम:।
सीतेति मधुरां वाणीं व्याहरन् प्रतिबुध्यते॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘नरश्रेष्ठ! श्रीरामको सदा आपकी चिन्ताके कारण कभी नींद नहीं आती है। यदि कभी आँख लगी भी तो ‘सीता-सीता’ इस मधुर वाणीका उच्चारण करते हुए वे जल्दी ही जाग उठते हैं॥ ४४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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