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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना
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श्लोक 42
श्लोक
5.36.42
नैव दंशान् न मशकान् न कीटान् न सरीसृपान्।
राघवोऽपनयेद् गात्रात् त्वद्गतेनान्तरात्मना॥ ४२॥
अनुवाद
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श्रीरघुनाथ जी का मन हमेशा आपमें लगा रहता है, इसलिए उन्हें अपने शरीर पर चढ़े हुए डांस, मच्छरों, कीड़ों और सांपों को हटाने का भी ध्यान नहीं रहता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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