मन्दरेण च ते देवि शपे मूलफलेन च।
मलयेन च विन्ध्येन मेरुणा दर्दुरेण च॥ ३८॥
यथा सुनयनं वल्गु बिम्बोष्ठं चारुकुण्डलम्।
मुखं द्रक्ष्यसि रामस्य पूर्णचन्द्रमिवोदितम्॥ ३९॥
अनुवाद
माता सीता से ज़ब हनुमान जी ने कहा कि आप जल्दी ही श्री राम जी के मुखारबिंद को देखेंगी जो कि पूर्णिमा के चाँद की तरह सुंदर है जिसके नेत्र बहुत सुंदर हैं, होंठ बिम्बफल की तरह लाल हैं और सुंदर कुंडल हैं, इसके साक्षी के लिए मंदराचल, मलय, विंध्य, मेरु और दर्दुर पर्वतों की शपथ लेता हूं और फल-मूल की भी शपथ लेता हूं।