श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना  »  श्लोक 38-39
 
 
श्लोक  5.36.38-39 
 
 
मन्दरेण च ते देवि शपे मूलफलेन च।
मलयेन च विन्ध्येन मेरुणा दर्दुरेण च॥ ३८॥
यथा सुनयनं वल्गु बिम्बोष्ठं चारुकुण्डलम्।
मुखं द्रक्ष्यसि रामस्य पूर्णचन्द्रमिवोदितम्॥ ३९॥
 
 
अनुवाद
 
  माता सीता से ज़ब हनुमान जी ने कहा कि आप जल्दी ही श्री राम जी के मुखारबिंद को देखेंगी जो कि पूर्णिमा के चाँद की तरह सुंदर है जिसके नेत्र बहुत सुंदर हैं, होंठ बिम्बफल की तरह लाल हैं और सुंदर कुंडल हैं, इसके साक्षी के लिए मंदराचल, मलय, विंध्य, मेरु और दर्दुर पर्वतों की शपथ लेता हूं और फल-मूल की भी शपथ लेता हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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