श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  5.36.37 
 
 
तवादर्शनजेनार्ये शोकेन परिपूरित:।
न शर्म लभते राम: सिंहार्दित इव द्विप:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  आर्ये! आपके न देखने से उत्पन्न हुए शोक से उनका हृदय भरा रहता है और वो दुःख से पीड़ित होते हैं इसलिए श्रीराम सिंह से पीड़ित हुए हाथी की तरह उनको कभी भी चैन नहीं मिल पाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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