श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  5.36.29 
 
 
धर्मापदेशात् त्यजत: स्वराज्यं
मां चाप्यरण्यं नयत: पदाते:।
नासीद् यथा यस्य न भीर्न शोक:
कच्चित् स धैर्यं हृदये करोति॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  "धर्मपालन के उद्देश्य से अपना राज्य त्यागने और मुझे जंगलों में पैदल ले जाते समय जिन्हें तनिक भी डर और दुख नहीं हुआ, क्या श्रीरघुनाथजी इस संकट के समय अपने दिल में धैर्य धारण कर पाएँगे?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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