धर्मापदेशात् त्यजत: स्वराज्यं
मां चाप्यरण्यं नयत: पदाते:।
नासीद् यथा यस्य न भीर्न शोक:
कच्चित् स धैर्यं हृदये करोति॥ २९॥
अनुवाद
"धर्मपालन के उद्देश्य से अपना राज्य त्यागने और मुझे जंगलों में पैदल ले जाते समय जिन्हें तनिक भी डर और दुख नहीं हुआ, क्या श्रीरघुनाथजी इस संकट के समय अपने दिल में धैर्य धारण कर पाएँगे?"