श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 36: हनुमान जी का सीता को मुद्रिका देना, सीता का ‘श्रीराम कब मेरा उद्धार करेंगे’ यह उत्सुक होकर पूछना तथा हनुमान् का श्रीराम के सीताविषयक प्रेम का वर्णन करके उन्हें सान्त्वना देना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  5.36.28 
 
 
कच्चिन्न तद्धेमसमानवर्णं
तस्याननं पद्मसमानगन्धि।
मया विना शुष्यति शोकदीनं
जलक्षये पद्ममिवातपेन॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  क्या शोक से दुःखी हुए श्रीराम का वह सोने के समान रंग वाला और कमल के समान खुशबू वाला मुख, मेरे बिना जल के सूख जाने पर धूप से जिस तरह कमल सूख जाता है उसी तरह सूख तो नहीं गया है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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